विवाहेतर संबंध और बच्चे की पितृत्व पहचान पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: पति ही माना जाएगा कानूनी पिता

सुप्रीम कोर्ट का अहम निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में विवाहेतर संबंध (Extramarital Affair) और उससे जन्मे बच्चों की पितृत्व पहचान को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि पत्नी विवाह के दौरान किसी अन्य पुरुष से संबंध बनाती है और बच्चे की मां बनती है, तो भी उस बच्चे का कानूनी पिता महिला का पति ही माना जाएगा।
यह प्रावधान तभी लागू होगा जब पति-पत्नी का विवाह वैध रूप से चल रहा हो और उनके बीच वैवाहिक संबंध (शारीरिक संबंध) बने हुए हों।
क्या था पूरा मामला?
यह मामला केरल से जुड़ा है। एक विवाहित महिला ने विवाहेतर संबंध से बच्चे को जन्म दिया। बाद में उसने तलाक ले लिया और बच्चे का उपनाम बदलवाने के लिए कोचीन नगरपालिका में आवेदन किया। लेकिन नगरपालिका ने अदालत के आदेश के बिना आवेदन स्वीकार करने से इनकार कर दिया।
महिला ने कोर्ट में दावा किया कि बच्चे का वास्तविक पिता उसका प्रेमी है और उसी से भरण-पोषण (Maintenance) की मांग की। निचली अदालत ने उस व्यक्ति को डीएनए टेस्ट कराने का आदेश दिया। इसके खिलाफ उसने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने कहा कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 112 के अनुसार यदि विवाह के दौरान महिला गर्भवती होती है, तो बच्चा कानूनी रूप से पति का माना जाएगा।
- इस प्रावधान का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि बच्चों की पितृत्व पर संदेह और अनावश्यक जांच से बचा जा सके।
- यदि कोई पुरुष यह साबित करना चाहता है कि बच्चा उसका नहीं है, तो उसे यह प्रमाण देना होगा कि उस अवधि में पत्नी के साथ उसका शारीरिक संबंध बनना असंभव था।
- पति को पितृत्व साबित करने के लिए डीएनए टेस्ट कराने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।
अदालत ने स्पष्ट किया कि “संपर्क में न रहना” (non-access) का मतलब है कि उस अवधि में पति-पत्नी के बीच शारीरिक संबंध संभव ही नहीं था।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत का डीएनए टेस्ट का आदेश रद्द कर दिया और कहा कि विवाहेतर संबंधों से पैदा हुए बच्चे का कानूनी पिता पति ही माना जाएगा, जब तक कि यह साबित न हो जाए कि पति-पत्नी के बीच शारीरिक संबंध होना संभव ही नहीं था।